हाल ही में सरकार द्वारा 14 सितंबर को संसद में पारित किए गए तीन नए कृषि कानूनों (किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य विधेयक 2020। मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा विधेयक 2020 के किसान सशक्तिकरण और संरक्षण समझौते और आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020) का विरोध किए जा रहे} किसानों द्वारा आपत्ति जताई गई है किसानों को डर है कि वह कानूनों की आड़ में कॉर्पोरेट जगत कृषि क्षेत्र पर हावी हो जाएगा और किसानों के शोषण का खतरा पैदा हो जाएगा।
भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार एक ड्राफ्ट तैयार कर हमें देगी और कानून वापस लेने पर बात होनी चाहिए ।ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव का कहना है कानूनों को वापस लेने की है वे संशोधन नहीं चाहते हैं|
सहकारी संघवाद: खाद्य पदार्थों में व्यापार और वाणिज्य समवर्ती सूची का हिस्सा है वहीं कृषि और बाजार राज्य का विषय है इस प्रकार केंद्र सरकार इस पर संवैधानिक स्वामित्व रखती है।
एमएसपी क्या है और इस पर विरोध क्यों?
एमएसपी में अनाज के 7 फसलें दलहन के पांच फसलें तिलहन की 7 फसलें और चार कमर्शियल फसलों को शामिल किया जाता है। एमएसपी में धान गेहूं मक्का जौ बाजारा चना तुअर मूंग उड़द मसूर सरसों सोयाबीन सूरजमुखी गन्ना कपास जैसी फसलों का एमएसपी सरकार द्वारा तय किया जाता है एमएसपी की गणना हर साल सीजन की फसल आने से पहले सरकार द्वारा तय की जाती है।
फिर बाजार में फसल का रेट भले ही कितना ही कम क्यों ना हो सरकार उसे तहे एमएसपी पर ही खरीदेगी। जिससे किसानों को क्या फायदा होता है कि बाजार में फसल का दाम कितना भी क्यों ना गिरता है तय कीमत के अनुसार यानी एमएसपी से किसानों को तसल्ली रहती हैं।
किसानों से सरकार द्वारा एमएसपी पर खरीदकर बफर स्टॉक बनाती है और इस अनाज का इस्तेमाल सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीटीएस के लिए होता हैं।अगर कभी प्रचार में किसी अनाज में तेजी आती है तो सरकार अपने बफर स्टॉक में से अनाज खुले बाजार में निकालकर कीमतें काबू करती है पर एमएसपी पर छोटे किसान अपनी फसल को नहीं
बेच पाते, बिचौलिया किसान से फसल खरीद कर एमएसपी का फायदा उठाते हैं।
नए विधेयक से किसानों को डर है कि धीरे-धीरे एमएसपी खरीद बंद हो जाएगी क्योंकि कई कमेटियों ने सरकारी खरीद घटाने की सिफारिश की है ।जिससे किसानों को डर है कि खरीद के लिए निजी कंपनियों पर निर्भरता बढ़ेगी और निजी कंपनियां मनमानी कीमत पर फसल खरीदेगी जिससे कीमत कम मिलेगी ।
पर सरकार का कहना है कि एम एस पे पर कानूनों का कोई असर नहीं पड़ेगा । एम एस पर सरकार कोई बदलाव नहीं करने वाली है।
पर आंदोलन का इस किसान सरकार से लिखित में आश्वासन चाहते हैं पर अग्रसर का सबकुछ एम एस पेपर खरीदें यह उसके लिए आर्थिक तौर पर संभव नहीं है इससे सरकारी खजाने पर बहुत आर्थिक बोझ पड़ेगा।
नया विधेयक यानी कि एपीएमसी को किसानों की उपज को प्रभावी कीमत खोज के लिए खरीदारों और विक्रेताओं के बीच उचित व्यापार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था| नया विधेयक एपीएमसी खरीदारों, कमीशन एजेंटों, निजी बाजारों को लाइसेंस प्रदान करके किसानों की उपज के व्यापार को विनियमित करता है।
आलोचक और विपक्षी दल एपीएमसी के एकाधिकार के बटन को न्यूनतम समर्थन मूल्य आने के एमएसपी पर खाद्यान्न की सुनिश्चित खरीद को समाप्त करने के संकेत के रूप में देखते हैं जबकि सरकार “एक राष्ट्र एक बाजार” ” एक राष्ट्र एक एमएसपी” पर है